उच्च न्यायालय इलाहाबाद ने बियार जाति को उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जनजातिय का दर्जा देने के मामले की सुनवाई करते हुए केंद्र व राज्य सरकार से किया जबाब तलब
इलाहाबाद। उच्च न्यायालय इलाहाबाद में दाखिल रिट याचिका संख्या- 26445 आफ 2022 दिनेश कुमार बियार वर्सेस युनियन आफ इण्डिया एण्ड अदर्स में जिसकी सुनवाई मा . न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा व मा.न्यायमूर्ति विकास जी की कोर्ट के समक्ष हुई , उक्त मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने आदेश किया कि बियार समुदाय को विन्ध्य प्रदेश राज्य के लिए जारी अधिसूचना दिनांक 20 सितम्बर 1951 के तहत अनूसूचित जनजाति के रूप में अधिसूचित किया गया था । राज्य पुनर्गठन अधिनियम 1956 के परिणाम स्वरूप तत्कालीन विंध्य प्रदेश का उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में पुनर्गठन हो जाने के पश्चात जहां अनूसूचित जनजाति के रूप बियार समुदाय की स्थिती को संरक्षित किया जाना चाहिए था तथा राज्य के लिए अन्य पिछड़ा वर्ग में परिवर्तित नहीं किया जाना चाहिए था।
उत्तर प्रदेश , खासकर , जब मध्यप्रदेश राज्य इसे अनूसूचित जनजाति का दर्जा देना जारी रखता है जबकि वर्ष 1950 और 1951 में संविधान ने उक्त बियार जाति को जनजाति का दर्जा तो अब उन्हें पिछड़ा वर्ग में शामिल कर उनके साथ अन्याय किया जा रहा है।कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए युनियन आफ इण्डिया एण्ड अदर्स के अधिवक्ताओं को चार सप्ताह का समय जबाब दाखिल करने हेतु दिया है तथा अग्रिम 28 नवम्बर 2022 को सुनवाई की तिथि निश्चित की है ।
उक्त मामले में याचिका कर्ता की तरफ से अधिवक्ता अभिषेक चौबे ने बहस किया । याचिका कर्ता अखिल भारतीय बियार समाज के राष्ट्रीय महासचिव दिनेश बियार ने बताया कि अभिवाजित मध्यप्रदेश में यह जाति आदिम जाति की सूचि में सम्मिलित रही है। विन्ध्य प्रदेश के तत्कालीन आठ जिलों रीवा , सीधी , शहडोल , पन्ना , छतरपुर , दतिया , टीकमगढ़ , सतना को छोड़कर शेष विन्ध्य क्षेत्र में बियार जाति को उसके हक से वंचित कर दिया गया है , जो अवैधानिक है । अत : हम लोग पूर्व की स्थिति की बहाली चाहते हैं तथा मा . उच्च न्यायालय इलाहाबाद से उम्मीद है कि उत्तर प्रदेश में अनूसूचित जनजाति का दर्जा देने का आदेश जारी कर हम लोगों के हक में फैसला होगा।