खनन सामग्री लेकर परिवहन कर रहे वाहनों को आखिर फर्जी परमिट या फिर बिना परमिट के गिट्टी बालू परिवहन की क्यूँ पड़ रही है जरूरत ?
सोनभद्र में स्थित गिट्टी बालू की खदानों से निकले खनन सामग्री को बाजार तक पहुंचाने के लिए परमिट के खेल व अवैध खनन से जुड़े कुछ पहलुओं की पड़ताल करती विंध्यलीडर की रिपोर्ट।। भाग -1
सोनभद्र। सोनभद्र की पहचान उसके खनन उद्योग से होती है चाहे वह घर मकान बनाने के लिए अनिवार्य रा मैटेरियल डोलो स्टोन का खनन हो या सड़क निर्माण के लिए प्रयोग में आने वाले सैंड स्टोन का खनन हो या फिर सोनभद्र की वादियों से गुजरने वाली विभिन्न नदी घाटी से बालू का खनन हो या फिर देश के विद्युत उत्पादन हेतु लगे कारखानों के लिए ईंधन की अनिवार्य कड़ी के रूप में कोयले का खनन हो, इन सभी तरह के खदानों से निकलने वाले गिट्टी,बालू अथवा कोयले को बाजार तक पहुंचने के लिए वैध परिवहन प्रपत्र की आवश्यकता पड़ती है जो इन उद्योगों के संचालन के लिए जिम्मेदार खनन विभाग की देख रेख में उक्त विभाग के लाइसेंसी खनन लीज धारक द्वारा उनकी खदानों से खनन सामग्री लेकर परिवहन करने वाले वाहनों को दिया जाता है।सरकार को राजस्व इसी परिवहन प्रपत्र अर्थात एम एम 11 या फिर कह लें कि परमिट के सहारे ही प्राप्त होता है अर्थात जितना परमिट जारी होगा उतना ही राजस्व सरकार को प्राप्त होगा और यही वजह है कि सरकार की विभिन्न एजेंसियां यह जांच करने में लगी रहती हैं कि विना वैध परिवहन प्रपत्र के कोई भी वाहन खनन सामग्री लेकर परिवहन न करने पाए।
अब यदि पिछले कुछ महीनों में सोनभद्र से खनन सामग्री लेकर गुजरने वाले वाहनों की विभिन्न प्रवर्तन एजेंसियों से की गई जांच की कार्यवाही को देखते हैं तो पता चलता है कि हजारों गाडियों को या तो बिना परमिट या फिर ओभरलोडिंग में पकड़ा गया है और उनसे करोड़ो रूपये जुर्माना भी वसूला गया है।कई बार खनन विभाग द्वारा फर्जी परमिट इन वाहनों से पकड़ कर पुलिस विभाग में एफआईआर दर्ज कराया गया है जिसकी विवेचना जारी है।अभी कुछ दिनों पूर्व ही एक क्रेशर संचालक के खिलाफ भी खनन विभाग ने चोपन थाने में एफआईआर दर्ज कराई है कि उक्त क्रेशर संचालक द्वारा फर्जी तरीके से गिट्टी को बाजार तक पहुंचाने के लिए प्रपत्र सी निकाला गया जिसकी वजह से सरकार को करोड़ो रूपये की राजस्व क्षति हुई।इतना ही नही सूत्रों के मुताबिक कुछ और क्रेशर का भंडारण लाइसेंस को खनन विभाग ने रदद् किया है पर अभी तक उनके खिलाफ कोई दंडात्मक कार्यवाही अमल में नहीं लायी गयी है जिससे विभाग पर भी उंगली उठ रही है कि आखिर जब एक क्रेशर पर मिली गड़बड़ी के बाद उसके संचालक पर एफआईआर दर्ज कराया गया तो आखिर दूसरे को क्यू बचाया जा रहा है ?
अब यहां सवाल यह उठता है कि जब परमिट खदान मालिक को ही देना है तो वह उसके यहां से खनन सामग्री लेने वाले को परमिट क्यों नही दे रहा ?आखिर ओभरलोडिंग या फिर फर्जी परमिट या बिना परमिट के खनन सामग्री लेकर वाहनों को परिवहन करने की आवश्यकता ही क्यूँ पड़ रही है जबकि पकड़े जाने पर उनसे भारी जुर्माने की राशि वसूली जा रही हो ? जब हम इस सवाल के पड़ताल में जाते हैं तो हमें खनन विभाग व उसके लीज धारकों के एक ऐसे नेक्सस का पता चलता है जिसकी करतूतों को छुपाने के लिए ही शायद खनन सामग्री लेकर परिवहन कर रहे वाहनों या फिर क्रेशर संचालकों पर कार्यवाही कर विभाग अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ले रहा है।यहां आपको बताते चलें कि जब कोई भी लीज खनन विभाग द्वारा आवंटित की जाती है तो खनन से होने वाले पर्यावरण के नुकसान का आकलन करते हुए तथा उसके क्षेत्रफल को देखते हुए सुरक्षित खनन जिससे कि जनहानि व अन्य किसी भी प्रकार के पर्यावरण पर पड़ने वाले विपरीत प्रभाव को मिनिमम रखने के उद्देश्य से किसी भी खदान की एरिया में खनन की एक अधिकतम वार्षिक मात्रा तय कर दी जाती है अर्थात उक्त लीज धारक उक्त निर्धारित मात्रा से अधिक मात्रा का परमिट जारी नहीं कर सकता।और जब कोई भी लीज धारक अपने खनन एरिया में निर्धारित मात्रा से अधिक खनन करेगा तो उस अवैध खनन से निकले खनन सामग्री को बाजार तक पहुचाने के लिए ही ओभरलोडिंग या फिर फर्जी परमिट या बिना परमिट के परिवहन की आवश्यकता पड़ती है।
अब जब यह स्थापित है कि बिना परमिट या फर्जी परमिट या फिर ओभरलोडिंग हो रही है और खनन विभाग या फिर वन विभाग या परिवहन विभाग द्वारा लगभग प्रतिदिन ही ट्रकों को खनन सामग्री लेकर परिवहन करते हुए पकड़ा जा रहा है तो सबसे बड़ा सवाल यही है कि खनन विभाग द्वारा अपने लीज धारकों के खिलाफ कोई कार्यवाही क्यों नहीं हो रही ?क्योंकि लीज धारक द्वारा किए गए वैध खनन को बाजार तक पहुंचाने के लिए यह रास्ते न अपनाने पड़तेऔर यदि कोई भी वाहन यदि बिना परमिट या ओभरलोडिंग या फर्जी परमिट के सहारे परिवहन करते हुए पकड़ा जा रहा है तो यह तो लगभग निश्चित ही है कि खदान की आड़ में कहीं न कहीं अवैध खनन हो रहा है।फिर विभाग यह पता क्यूँ नहीं कर पा रहा कि आखिर उक्त खनन सामग्री लेकर परिवहन कर रहे इन वाहनों पर माल किस खदान का है।अभी पिछले दिनों एक क्रेशर संचालक पर लगभग 6000 घन मीटर गिट्टी के परिवहन के लिए फर्जी परिवहन प्रपत्र जारी करने का खनन विभाग ने एफआईआर दर्ज कराया है जिसकी वजह से करोड़ों रुपए के राजस्व क्षति का अनुमान लगाया गया है।आखिर विभाग यह पता क्यों नही लगा रहा कि उक्त क्रेशर पर किस खदान से अवैध खनन से निकाले गए पत्थर से बनी गिट्टी को बाजार तक पहुंचाने के लिए फर्जी परिवहन प्रपत्र की आवश्यकता पड़ी ?आखिर जब कोई क्रेशर संचालक दोषी है तो जिस पत्थर खदान में अवैध खनन हुआ और जिस अवैध खनन से निकले पत्थर को बाजार तक पहुंचाने के लिए ही फर्जी परमिट या बिना परमिट के।परिवहन की आवश्यकता पड़ती है उन पत्थर खदानों अथवा बालू की खदानों के खिलाफ खनन विभाग अक्सर चुप्पी क्यों साध लेता है ?
यहां यह बात उल्लेखनीय है कि खनन विभाग बिना परमिट या फिर फर्जी परमिट या ओभरलोडिंग के खनन सामग्री लेकर परिवहन कर रहे वाहनों पर कार्यवाही कर चाहे अपनी जितनी भी पीठ थपथपा ले पर अवैध खनन में लिप्त खदानों पर विभाग द्वारा कोई कार्यवाही न करने से अब विभाग पर उंगली उठने लगी है।लोग बाग अब कहने लगे हैं कि एक तरफ विभाग की शह पर कुछ चिन्हित लीज धारकों द्वारा लगातार अवैध खनन किया जा रहा है और खनन विभाग अपनी करतूतों पर पर्दा डालने के उद्देश्य से खनन सामग्री लेकर परिवहन कर रहे वाहनों की जांच में बिना परमिट या फिर फर्जी परमिट या ओभरलोडिंग में पकड़ कर उनसे जुर्माना वसूल अपनी पीठ थपथपा रहा है।सवाल यह है कि क्या विभाग द्वारा लीज या खदानों की जाँच नहीं की जा रही ?यदि खनन विभाग द्वारा खदानों की नियमित जाँच होती है तो क्या उन खदानों में निर्धारित वार्षिक मात्रा से अधिक किये गए खनन को विभाग के लोग नहीं पकड़ पा रहे ? यदि नहीं तो उनकी योग्यता सवालों के घेरे में है और यदि हां तो फिर उन खदानों के खिलाफ कोई कार्यवाही क्यूँ नहीं हो पा रही ?क्योकि खनन विभाग यह तो नहीं कह सकता कि खदानों की आड़ में अवैध खनन नहीं हो रहा।