आखिर क्यूँ मेहरबान है सरकारी अमला अवैध खनन में लिप्त व्यापारी पर ?
—खनन सेक्टर के हज़ारों करोड़ के खेल को कानून के दायरे में लाने वाला जाँबाज़ खनन इंस्पेक्टर ईश्वर चंद की सोनभद्र में जम गई धाक
–जिन आराजी नम्बरों पर आयुक्त विंध्याचल मंडल व अपरजिलाधिकारी ने खनन से रोक लगा दी उन आराजी नम्बरों में भी बदस्तूर खनन जारी,जिम्मेदार गाँधी के बन्दर बन देख रहे तमाशा
–पुलिस अधीक्षक सोनभद्र ने एक खनन लीज होल्डर के बाबत आयुक्त विंध्याचल मंडल को रिपोर्ट दी है कि उक्त खनन व्यापारी गिरोहबंद होकर अपने अगल बगल के लोगो को परेशान करता है फिर भी उस पर कार्यवाही न कर उसे बचाने का प्रयास हो रहा आखिर क्यों
संगठित अपराधियों का ख़ात्मा और लॉ एंड ऑर्डर में लगातार हो रहा सुधार यही वह सूत्र है जिस पर उत्तर प्रदेश की योगी सरकार लगातार खुद को साबित करती आ रही है परन्तु मुख्यमंत्री की सख्त प्रशासक की छवि को जिले के कुछ अफसर व खनन से जुड़े व्यापारी लगातार पलीता लगाने में जुटे हैं।खनन के खेल से जुड़े उक्त खनन माफियाओं की पोस्टमार्टम करती समर सैम की रिपोर्ट
सोनभद्र। जहां मुंसिफ ही मुजरिम हो जाये, वहां लाखों की पेशकश ठुकराकर खान निरीक्षक ईश्वर चंद ने सोनभद्र में फर्जी परमिट के सहारे चलाये जा रहे अवैध खनन के कारोबार को एक्सपोज़ किया पर उसके बाद उक्त काले कारोबार में लिप्त लोग लगातार काले साम्राज्य को बेपर्दा होने से रोकने का कुचक्र रच रहे हैं। घटना 21 मई2022 को उस वक़्त प्रकाश में आई जब खनिज जांच टीम ने उपखनिज से भरे वाहनों की जांच के दौरान एक वाहन का परमिट फर्जी पाया। जांच के दौरान वाहन संख्या यूपी64 एटी 6234को रोककर वाहन चालक छबिन्दर पुत्र लगनधारी निवासी ग्राम भरहरी एवं थाना जुगैल से 16घन मीटर गिट्टी से सम्बंधित परिवहन प्रपत्र मांगा गया तो चालक ने ई एम एम11 व मेसर्स सुरेश स्टोन क्रशिंग कम्पनी बग्घा नाला बिल्ली का बिल दिखाया।
खान निरीक्षक ईश्वर चंद ने चालक द्वारा दिये उक्त ईएमएम 11 को विभागीय वेबसाइट पर जांचने पर उसे फर्जी पाया। साथ ही विभागीय एमचेक ऐप से उक्त वाहन संख्या डालकर चेक करने पर वाहन से सम्बंधित कोई अभिवहन प्रपत्र जारी होना नहीं पाया गया। अभी असली खेल बाकी है जनाब, ईएमएम 11 नम्बर का क्यू आर कोड को मोबाइल से स्कैन करने पर विभागीय वेबसाइट के स्थान पर किसी अन्य फर्जी वेबसाइट से ईएमएम 11 में अंकित विवरण के अनुसार विवरण खुला, जो पूणतया फर्जी है। इससे साबित होता है कि फर्जी परमिट का खेल पूरे प्रदेश में खुले आम चल रहा है। प्रदेश के अन्य जनपद में फर्जी परमिट पकड़ा जा चुका है। मगर सिर्फ सामने की घटना को कानून के दायरे में लाकर लीपापोती कर दी गई। विवेचना को आगे नहीं बढ़ाया गया।
पूंछ तांछ में चालक ने बताया कि वाहन स्वामी चोपन के प्रीतनगर निवासी सुफियान के कहने पर गिट्टी लोड करने सरदार प्लांट के मालिक द्वारा सुरेश क्रेशर प्लांट से लोड कराया गया। सुफियान ने जांच टीम को सहयोग करते हुए सुबूत उपलब्ध कराया कि हमने सही सही भुगतान मोबाइल से सुरेश क्रशर प्लांट के स्वामी के खाते में ट्रांसफर किया है। वाहन चालक ने जांच टीम को बताया कि सुरेश स्टोन क्रशर कम्पनी के मुंशी गोविंदा ने यह ई एमएम11 दिया है। जांच टीम जब वाहन चालक को साथ लेकर उक्त प्लांट पर पहुंची तो मुंशी ने स्वीकार किया कि गिट्टी हमारे ही प्लांट से लोड हुई है और परमिट भी हमने अमित कुमार पुत्र ओमप्रकाश निवासी ट्रांसपोर्ट नगर जिला गोरखपुर से दूरभाष नम्बर पर वार्ता कर लिया था।
मुंशी को दो और परमिट दूरभाष पर अमित से बात कर लाने को कहा तो वह लेकर आ गया। जांच टीम ने जांचोपरांत उसे भी फर्जी पाया और उसी वक्त उसे दबोच कर चालक सहित लिखापढ़ी कर पुलिस को सुपुर्द कर दिया। इसके लिए ईमानदार एवं कर्तव्य परायण खान निरीक्षक ईश्वर चंद को लाखों रुपये का प्रलोभन और तरह तरह से प्रेशर डाला गया। परन्तु जवान ने देश हित में अपने जमीर से कोई सौदा नहीं किया। सही सही लिखित तहरीर देकर रोबेर्टसगंज कोतवाली में एफआईआर पंजीकृत करा दिया।
यहीं से देश और समाज के इस निष्ठावान रणबाँकुरे की जिम्मेदारी और अधिकार की लछमण रेखा खिंच जाती है। अब गेंद पुलिस के पाले में चली जाती है और यहीं से डर्टी पॉलिटिक्स का खेल शुरू होता है। वैसे भी जग जाहिर है कि पुलिस मोहकमा रिश्वतखोरी के लिए नाटोरियस का वट वृक्ष बन चुका है। साधुवाद के पात्र विवेचक उप निरीक्षक प्रमोद कुमार यादव ने छबिन्दर, अमित कुमार, संदीप मिश्रा, बीनू सिंह, अज्ञात वाहन स्वामी, मेसर्स सुरेश स्टोन क्रशर, उत्तर प्रदेश सरदार क्रश के संचालक एवं अन्य व्यक्ति के नाम जो अज्ञात में एफआईआर में सम्बद्ध किया गया था से पूंछ तांछ की गई।
विवेचना में जांच के दौरान वेद प्रकाश यादव, अजित यादव, जगदीश प्रसाद यादव सहित एक लीज धारक धीरज रॉय एवं उसके मुंशी गोविंद कुमार का नाम प्रकाश में आया। मुकदमा अपराध संख्या 372/2022 धारा379,419,420,467,468,471, भारतीय दंड विधान व 3/57/7 उत्तर प्रदेश उपखनिज निवारण व 4/21खान एवं खनिज अधिनियम3/4सार्वजनिक संपत्ति नुकसान निवारण अधिनियम में बढ़ोतरी करते हुए 411भारतीय दंड विधान व 66सी एवं66डी आईटी एक्ट की वृद्धि की गई। उप निरीक्षक प्रमोद कुमार यादव की जांच सही दिशा में जा रही थी की खनन के काले साम्राज्य का संचालन कर रहे लोगों ने अपनी ऊंची पहुंच के आधार पर अचानक से गेयर चेंज कर उसे लूप लाइन में डाल दिया गया और विवेचना से उक्त विवेचक को हटाते हुए प्रभारी निरीक्षक रोबेर्टसगंज कोतवाली के आदेशानुसार विवेचना कृष्णानंद राय निरीक्षक रोबेर्टसगंज के हाथों में चली गई।
फ़िलहाल आंशिक रूप से विवेचना प्रचलित है। जिसे छ महीने से अधिक समय होने को आ रहा है। अपराधी लगातार अवैध खनन और फर्जी परमिट का खुला खेल बेधड़क खेलते हुए व्यापक पैमाने पर राजस्व एवं पर्यावरण को हानि पहुंचाने का एक सूत्रीय कार्यक्रम संचालित कर रहे हैं। खनन माफिया धीरज राय के खिलाफ इस प्रकरण में आईजीआरएस पर ओबरा निवासी योगेंद्र सिंह पुत्र रामपति ने गंभीर आरोप लगाते हुए निष्पक्ष विवेचना की मांग की है। इसके बाद भी विवेचना को लटकाकर मुख्य आरोपियों को बचाने हेतु चूहेदानी का सुराख ढूंढा जा रहा है। मुंशी गोविंदा से जुर्म स्वीकारने का हलफनामा लेकर विवेचना का पटाक्षेप करने का अपराधिक सडयंत्र रचा जा रहा है। फ़िलहाल नोबल पुलिस कप्तान डॉ यशवीर सिंह के नाक के नीचे विवेचना को लटकाकर कुचक्र रचा जा रहा है।
अवैध खनन एवं फर्जी परमिट का यह खेल लंबे समय से खनन सेक्टर में सिंडिकेट द्वारा खेला जा रहा है। कभी नकली परमिट तो कभी फर्जी परमिट पश्चिम बंगाल के परमिट से परिवहन किया जाता रहा है। ऐसा नहीं है कि यह खेल कभी ओपन नहीं हुआ। अक्सर फर्जी परमिट को जांच टीम ने पकड़ा भी है, परन्तु गुप् चुप तरीके से उसे निपटा दिया जाता था। फर्जी परमिट पकड़े जाने पर कारवाई भी कभी कभी अमल में लाई जाती थी। सिर्फ ड्राईवर को जेल भेजकर और वाहन सीज कर मामले को ख़त्म कर दिया जाता रहा है। ऐसा नहीं है कि फर्जी परमिट के खेल से खनिज विभाग, पुलिस विभाग एवं एआरटीओ विभाग परिचित नहीं है। लेकिन इस पर लम्बे समय से पर्दा डाला जाता रहा है। फर्जी परमिट के खेल में सभी के हाथ रंगे हुए हैं। समय ने करवट बदला और ईश्वर चंद जैसा जांबाज़ एवं ईमानदार खान निरीक्षक ने निर्भीकता के साथ इस खेल पर से पूरी तरह से पर्दा उठा दिया।
एक आंकलन के मुताबिक खनन माफियाओं द्वारा अबतक फर्जी परमिट के खेल से हज़ारों करोड़ रुपये के राजस्व का चूना सरकार को लगाया जा चुका है। अत्यधिक धन की लालसा ने खनन व्यवसाईयों को शातिर अपराधी बना दिया है। इस अपराध को बेनकाब किया एक सरल जीवन शैली में विश्वास रखने वाले खान निरीक्षक ईश्वर चंद ने। अवैध खनन को खपाने के लिए फर्जी परमिट की ज़रूरत पड़ती है। साथ ही समय समय पर नियम विपरीत संचालित खदानों पर कार्रवाई कर उसे कुछ समय के लिए बंद भी किया जाता है। कागज़ पर वह खदानें भले ही बंद रहती है। मगर धरातल पर उस खदान में काम दो तीन दिन ठप्प रखककर पुनः संचालित किया जाता है। ऐसा अपराध अधिकांश खदान संचालक करते हैं। ऐसे खदानें ज़्यादातर फर्जी परमिट का खेल करते हैं।
नियम विपरीत अंधाधुंध अवैध खनन को मार्केट में खपाने के लिए फर्जी परमिट का इस्तेमाल किया जाता रहा है। फर्जी परमिट के खरीद फ़रोख़्त में बाकायदा पूरा नेटवर्क काम कर रहा है। इसकी जड़ें समय के साथ साथ इतनी मजबूत हो चुकी है कि इसे सपा, बसपा और वर्तमान भाजपा सरकार भी उखाड़ने में नाकामयाब रही। जांच की धीमी और लीपापोती की प्रक्रिया को देखकर लग रहा है कि सिंडीकेट का कोई कुछ नहीं उखाड़ सकता। बाकायदा इस खेल में खनन माफियाओं ने खाकी के साथ साथ खादी वालों को भी शामिल कर लिया है। जिनको इस हिस्से का चढ़ावा मुसलसल मिल रहा है। खादी वाले खनन सेक्टर के रग रग से पहले से वाकिफ़ हैं। ईमानदार एवं साफ सुथरी छवि के सीएम योगी आदित्यनाथ के कोपभाजन से बचने के लिए ही सिंडिकेट ने जिले के रसूखदार खादी वालों को अपने खेल में शामिल कर लिया है। फर्जी परमिट का खेल सपा के पीरियड में अपने चर्मोत्कर्ष पर पहुंच गया था। एक तत्कालीन खान सर्वेयर ने इस खेल से हज़ारों करोड़ का आर्थिक साम्रराज्य खड़ा कर लिया।
फ़िलहाल सिंडिकेट ने हज़ारों करोड़ के फर्जी परमिट के खेल से देश के विभिन्न जनपदों में अकूत सम्पत्ति अर्जित कर रखी है। ज़्यादातर फर्जी परमिट का धन ज़मीन की खरीदारी और कमर्शियल भूखण्डों में निवेश किया गया है। अगर योगी सरकार फर्जी परमिट के खेल की जांच सीबीआई और ईडी को सुपुर्द कर दे तो सोनभद्र और वाराणसी में ही फर्जी परमिट के खेल से खरीदे गए हज़ारों करोड़ की प्रॉपर्टी सामने आ जायेगी।
खनन सेक्टर से अफवाह उड़ रही है कि कुछ माननीय द्वारा फर्जी परमिट के खेल को खनन माफियाओं से अपने कंट्रोल में लेने की क़वायद की जा रही है। फर्जी परमिट के खेल में न हर्रे लगे न फिटकरी, रंग चोखा ही चोखा। अब खनन के कागज़ी शेरो का असली शेरों से पाला पड़ा है। सोनभद्र की बालू साइडों पर माफियाओं का एकछत्र राज कायम हो चुका है। वहीं पत्थर खदानों में माफियाओं की एंट्री हो चुकी है। इसमें आखिर कितनी सच्चाई है यह जांच के बाद ही स्पष्ट हो सकता है। अंत में एक शेर बस बात ख़त्म, कौन मुजरिम है, मैं तस्वीर बनाऊं किसकी। एक आईना सरेराह लगा देता हूँ।