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आखिर क्यूँ चाकरी कर रहे कुछ अध्यापक खण्ड शिक्षा अधिकारियों की

सोनभद्र।किसी भी समाज व देश की प्रगति व उन्नति का आकलन उस देश मे रहने वाले लोगों की शिक्षा व उपलब्ध स्वास्थ्य सुविधाओं के आधार पर किया जाता है अर्थात वहां के लोगों की शिक्षा का स्तर ही वह मापदंड है जिससे हम किसी समाज की उन्नति को मापते हैं।यही वजह है कि सरकार शिक्षा के स्तर को उठाने के लिए हर सम्भव प्रयास कर रही है पर लगता है कि जिनके कंधों पर यह जिम्मेदारी दी गई है उन लोगों ने अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ अपने निजी स्वार्थ की सिद्धि में लग गए हैं और यही वजह है कि जिनके कंधों पर शिक्षा की अलख जगाने की जिम्मेदारी है वह लोग येन केन प्रकारेण स्कूलों से गायब रहने की जुगत में ही अपनी पूरी ताकत झोंक दी है।

आपको बताते चलें कि सोनभद्र का अधिकतर इलाका दुरूह जंगली व पहाड़ी हैं जिसमे गरीब आदिवासी अति पिछड़े समुदाय के लोग निवास करते हैं जो शिक्षा के महत्व को भी नहीं समझते शायद यही कारण है कि यदि इन दूरस्थ क्षेत्र के अध्यापक स्कूल से महीनों भी गायब रहते हैं तो अभिभावकों को कोई फर्क नहीं पड़ता।इसी का लाभ उठाते हुए अधिकांश अध्यापक स्कूल से महीनों गायब हो जाते हैं ।

वैसे तो खण्ड शिक्षा अधिकारियों की जिम्मेदारी है कि जांच कर ऐसे लोगों पर कार्यवाही की जाय और जांच के लिए बाकायदा एक तंत्र तैनात किया गया है फिर भी उक्त अध्यापक आखिर कैसे बच जा रहे हैं ? सूत्रों की मानें तो यहीं से खेल शुरू होता है और इस खेल में सिद्धहस्त हो चुके कुछ अध्यापक ही हैं जो खंड शिक्षा अधिकारियों के कारखास की भूमिका निभाते हैं।यहां आपको बताते चलें कि हर ब्लाक में खण्ड शिक्षा अधिकारी के कार्यालय में कुछ अध्यापक क्लर्कीय कार्यों का सम्पादन करते हैं और वह वर्षों से यही कार्य करते आ रहे हैं।एबीएसए चाहे जो भी आये इन कारखास टाइप अध्यापकों को कोई हिला कर इनके तैनाती वाले स्कुलों तक नहीं पहुंचा पाया।यदि कोई बहुत प्रयास किया तो ऐसे अध्यापक कुछ दिनों के लिए अपने तैनाती स्थल पर भले ही चेहरा दिखाने चले गए हों पर फिर इन कारखास अध्यापकों को बुला लिया जाता है।

शिक्षा विभाग के जिम्मेदार लोगो से बात करने पर कहा जाता है कि खण्ड शिक्षा अधिकारी के कार्यालय से वेतन आदि लगाने के कार्यों के सम्पादन के लिए स्कूल टाइम के बाद कुछ अध्यापकों से काम लिया जाता है।अब आप ही सोचिये जो अध्यापक दिन रात स्कूल न जाने की जुगत लगाते रहते हैं वह बिना किसी लाभ के स्कूल में पढ़ाने के बाद समाजसेवा में खण्ड शिक्षा अधिकारी के कार्यालय में सेवा भी दे रहे।यदि अधिकारियों की यह बात सही है तो ऐसे अधयापकों की सेवा के लिए उन्हें सम्मानित किया जाना चाहिए पर यह पड़ताल की विषयवस्तु है कि क्या यह बात वास्तव में सच है ?यदि नहीं तो आखिर किस लिए उक्त अध्यापक खण्ड शिक्षा अधिकारियों की चाकरी कर रहे ? वह भी तब जब हर ब्लॉक में संविदा पर एकाउंटेंट की नियुक्तियां हो गयी हैं तब उनसे वेतन न बनवा कर यह कार्य अध्यापकों से क्यूँ लिया जा रहा है ?क्या ऐसा कोई सच है जो वर्षों से जड़ जमाये इन अध्यापकों के हाथ से निकलकर व्यवस्था दूसरे हाथों में जाते ही खुलासा हो जाने के डर से विभाग देश के भविष्य से खिलवाड़ कर रहा है।ख़ैर जो भी हो यह तो निश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि नोनिहलो की शिक्षा व्यवस्था में लगी सरकारी व्यवस्था ही बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रही है।

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