Thursday, April 25, 2024
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आखिर कोयले के काले खेल का मास्टरमाइंड कौन ?

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दरअसल पिछले कुछ दिनों से जिला प्रशासन को ऐसी सूचना मिल रही थी कि शक्तिनगर थाना क्षेत्र के कृष्णशिला रेलवे साइट के पास बड़े पैमाने पर कोयले का भंडारण किया गया है जिसमें लगी आग से धुआं निकल रहा है जो न सिर्फ पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहा है बल्कि बड़ा जनहानि होने की संभावना भी है ।

इस सूचना के बाद एडीएम प्रशासन सहदेव मिश्रा ने तत्काल बिना देर किए प्रदूषण अधिकारी समेत वन विभाग व तहसील प्रशासन तथा लेखपाल को भेज कर जांच रिपोर्ट देने को कहा । जांच टीम जब जांच करने पहुंची तो वहां लगभग 34 बीघे की खाली जमीन थी जिसमें बड़े पैमाने पर कोयला भंडार किया हुआ था लेकिन वहां उसका कोई रखवाली करने वाला मौजूद नहीं था ।

बातचीत के दौरान प्रदूषण अधिकारी ने बताया कि उक्त स्थल पर लाखों टन कोयला होने की सूचना मिली थी, यहां आने पर पता चला कि उसमें आग लगी हुई है जिससे प्रदूषण फैल रहा है । एडीएम ने जब पूरे मामले को नजदीक से देखा व सुना तो उनके भी होश उड़ गए । उन्होंने कभी कल्पना नहीं की थी कि जिले में इतना बड़ा खेल चल रहा है और किसी को जानकारी तक नहीं । जिसके बाद उन्होंने तत्काल स्थानीय पुलिस के अलावा एनसीएल प्रशासन व ग्राम प्रधान को मौके पर बुलाया और पूछताछ शुरू की तो एनसीएल ने तो हाथ खड़े करते हुए कहा कि न जमीन उनकी है और न इस कोयला भंडारण के बारे में कोई जानकारी है । लेकिन जब एडीएम ने एनसीएल अधिकारी को बताया कि खतौनी में उक्त जमीन एनसीएल के नाम दर्ज है । लेकिन एनसीएल अधिकारी अपने बयान पर अडिग रहे कि इस जमीन के बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं है और न ही उक्त कोयला भंडारण के बाबत उन्हें कोई जानकारी है। जिसके बाद तो एडीएम भी सकते में आ गए कि आखिर इस प्लाट पर लगभग 10 मिलियन टन कोयला पड़ा है और इसका कोई मालिक ही नहीं ?

उन्होंने सूचना निकलवा कर एक सप्ताह का समय दिया है कि यदि इस भंडारित कोयले के बारे में कोई जानकारी रखता है तो संपर्क करे अन्यथा कोयले की नीलामी कर दी जाएगी । यहां सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि इतनी बड़ी मात्रा में कोयला यहां पहुंचा कैसे ?आखिर उक्त कोयला कहाँ से निकला और इसे कहाँ जाना था व इसको कहाँ प्रयोग किया जाना था तथा इस कोयले को यहाँ किसके इशारे पर रखा गया था ?इन सवालों के जबाब के लिए विंध्यलीडर की टीम आस पास के लोगों व इस काले कोयले के व्यापारियों से जब जानने का प्रयास किया तो कई चौंकाने वाली बात सामने आई।

बासी ग्राम के प्रधानपति का कहना है कि यह ब्लैक डायमंड का खेल कई महीनों से चल रहा है । उन्होंने बताया कि लगभग 32 बीघे के इस जमीन पर बड़ी संख्या में पेड़ लगा था लेकिन धीरे-धीरे सब काट दिया गया और उसके बाद यहां कोयला भंडारित कर उसमें बाहर से लाकर कोयले की डस्ट मिलाई जाती है जिसके बाद बासी इलाके में प्रदूषण भी बढ़ा है। प्रधानपति ने बताया कि यह रास्ता बच्चों के आने-जाने का था लेकिन काम शुरू होते ही सब बन्द हो गया । उन्होंने बताया कि इस मामले को लेकर उन्होंने जिला प्रशासन सहित पुलिस अधीक्षक व लोकल पुलिस कर्मियों तक को पत्र लिखकर अवगत कराया परन्तु उनके पत्र पर किसी ने संज्ञान नहीं लिया।

ऐसे में बड़ा सवाल यह हैं कि जिस तरह से इतने बड़े पैमाने पर यह खेल चल रहा था किसी को जानकारी कैसे नहीं हुई । उस इलाके का हल्का दरोगा व चौकीदार को यह खेल की जानकारी क्यों नहीं हो सकी । यानी पुलिस उस इलाके में सही तरीके से गस्त नहीं करती या फिर यदि जानकारी थी तो उच्चाधिकारियों को इसकी जानकारी क्यों नहीं दी गयी ?

सवाल तो यह भी उठना लाजमी है कि इतने बड़े पैमाने पर अवैध कारोबार चल रहा था तो एनसीएल को जानकारी कैसे नहीं हुई ? इसके अलावा सबसे बड़ा सवाल यह है कि इस कारोबार में लगे ट्रांसपोर्ट कौन थे जो माल ढोते थे और किसी की भनक तक नहीं लगी ?

यहाँ यह बात भी उल्लेखनीय है कि यदि पूरे घटना क्रम पर नजर डालें तो रेलवे स्टाफ भी अवैध कारोबार में अहम रोल अदा करता रहा है । क्योंकि जिस तरह से प्रधानपति व स्थानीय सूत्र बता रहे हैं कि यह पूरा खेल मिलावट का है, कोयले में चारकोल की मिलावट होती थी । हालांकि एडीएम ने इस बात की पुष्टि नहीं की लेकिन उन्होंने कोयले में चारकोल की मिलावट वाली बात से इनकार भी नहीं किया ।

अब प्रशासन इस बात को लेकर भी जांच कर रहा हैं कि पिछले कुछ महीनों से बिजली संकट को लेकर जिस तरह से देश-प्रदेश जूझ रहा है कहीं आसपास पॉवर प्लांट में भेजे जाने वाले कोयले का कनेक्शन यहां से तो नहीं था । क्योंकि जिस तरह से बिजली संकट के समय कोयले की उपलब्धता बताई जा रही थी और पॉवर प्लांटों में भी उपलब्ध था तो आखिर संकट किस चीज का था ? क्या जिस मिक्स कोयले की बात स्थानीय लोग बता रहे हैं वह तो नहीं, क्योंकि सूत्रों के मुताबिक बोगी से कोयला उतार कर उसमें चारकोल मिलाया जाता था और उसे सप्लाई के लिए भेजा जाता था ।

बिजली से जुड़े विशेषज्ञों की माने तो जिस 10 मिलियन टन कोयले की बात की जा रही है उसकी बाजारू कीमत 6 हजार करोड़ है और इतने कोयले से लगभग 6 लाख मेगावाट बिजली पैदा की जा सकती है ।आखिर इतनी बड़ी मात्रा में कोयला बिना किसी वजह के तो भंडारित किया नहीं गया होगा ? इस धंधे से जुड़े कुछ लोगों की बात पर यदि विश्वास किया जाय तो इस काले सोने के अवैध कारोबार से जुड़े लोग यहाँ कोयला स्टॉक कर उसमें चारकोल अथवा लोहे के कारख़ानों से निकले कोयले के चूरे जैसे अपशिष्ट की मिलावट कर विद्युत उत्पादन कारखानों में सप्लाई कर बचे हुए असली कोयले को बाजार में बेच कर काली कमाई में लगे हैं।

यदि यह बात सही है तो इस खेल में बड़े बड़े लोग शामिल हो सकते हैं।फिलहाल प्रशासन जांच करा रहा है और जांच के बाद ही कुछ कह पाना सम्भव है।जो भी है यह तो सम्भव नहीं की स्थानीय प्रशासन जिसमे पुलिस ,एनसीएल के सुरक्षा व्यवस्था में लगे लोग सहित रेलवे प्रशासन को यह कैसे सम्भव है कि इतनी बड़ी मात्रा में वहां कोयला भंडारित कर मिलावट होती रही और उन्हें इसकी भनक भी न लगी ? इस लिए उक्त काले कोयले के इस खेल में इन लोगों की भूमिका की भी जांच की जानी चाहिए।

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