आखिर कोयला के काले साम्राज्य पर बुलडोजर बाबा का बुलडोजर कब गरजेगा ?
(सोनभद्र से समर सैम की रिपोर्ट)
Sonbhadra news(सोनभद्र)। सभी के जेहन में यह सवाल बार बार कौंध रहा है कि बुलडोजर बाबा के उत्तम प्रदेश के उत्तम जनपद सोनभद्र में अवैध कोयले की तश्करी एवं कोयले की मिलावट खोरी के खेल पर आखिर कब लगाम लगेगी ? अभी हाल ही में जांच के दौरान सलाइबनवा में 18 ट्रकों को सीज़ किया गया था और वहीं 53 ट्रकों के कागज पत्तर में ख़ामियों को देखते हुए उन्हें संदिग्ध मानते हुए उनका चालान भी किया गया था। परन्तु उक्त जांच के बाद भी चोपन थाना क्षेत्र के सलाइबनवा रेलवे स्टेशन के कोल डंपिंग पॉइंट पर अभी भी धड़ल्ले से मिलावटखोरी का खेल खेला जा रहा है। व्यापक पैमाने पर अवैध कोयले का भंडारण भी किया जा रहा है। प्रतिदिन करोड़ों रुपये के इस खेल में कोल माफिया सिर से पैर तक कोयले की कालिख़ से पोते हुए हैं।
ऐसा लगता है कि वर्तमान शासन सत्ता में बैठे हुए सफेदपोशों का इन कोल माफियाओं को कहीं न कहीं से संरक्षण अवश्य ही मिल रहा है।यही वजह है कि शायद सत्ता के संरक्षण में उक्त कोल माफिया इस कदर मनबढ़ हो गए हैं कि समाज में संविधान का चौथा स्तंभ समझे जाने वाले पत्रकारों को कवरेज करने से बलपूर्वक रोकते हैं।अभी कुछ दिनों पूर्व ही कोल माफियाओं के गुर्गों ने सलाइबनवा डम्पिंग साइट पर कवरेज करने गये स्थानीय ग्रामीण पत्रकारों को धमकियां देते हुए मारा पीटा,जिसमें से एक पत्रकार को हालत नाज़ुक होने पर हॉस्पिटीलाइज़ होना पड़ा। सलाइबनवा रेलवे स्टेशन पर पत्रकारों के ऊपर हुए इस हमले का विडियो और फोटोज सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है जिसमें कोल माफियाओं के गुर्गों की दबंगई देखी जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट के सख़्त रुख़ अख्तियार करने के बाद भी अराजगतत्व पत्रकारों पर हमला करने से बाज़ नहीं आ रहे हैं। स्थानीय प्रशासन ने अंडर प्रेशर में आकर पत्रकारों के ऊपर हुए निंदनीय हमले को दबाने का काम किया।
आस पास के ग्रामीणों का कहना है कि रात के अंधेरे में सलाइबनवा स्टेशन के डम्पिंग सेंटर के आस पास असलहा धारियों का जमावड़ा लगा रहता है। रात के अंधेरे में जमकर कोयले में मिलावटखोरी का खेल खेला जाता है।इस खेल में सत्ता पक्ष के कुछ नेता, कुछ पत्रकार एवं कुछ पुलिस वालों का मजबूत गठजोड़ काम कर रहा है।योगिराज में अवैध कोयले का गोरखधंधा अबाधगति से फल फूल रहा है। प्रतिदिन दर्जनों अवैध कोयला लदी गाड़ियां लोढ़ी स्थित खनिज जांच चौकी से गुज़रती है। मगर किसी की मजाल नहीं है कि रोककर जांच करने की गुस्ताख़ी कर सके। इस धंधे में सभी का महीना फिक्स है। इस अवैध कारोबार में कई लोग शून्य से शिखर पर पहुंच गए। सूत्रों की माने तो डाला स्थित एक पीसीओ संचालक ने महज़ चार सालों में करोड़ों का साम्राज्य खड़ा कर लिया।
जनपद सोनभद्र में कोयले का काला कारोबार संघठित रूप में संचालित किया जा रहा है। समय की शिला पर खड़ी जनता योगी सरकार की तरफ टकटकी लगाकर देख रही है कि ऐसे संगठित अपराध करने वालों पर गैंगस्टर एक्ट कब लगेगा ? ऐसे अपराधियों की सम्पत्तियों को योगी सरकार कब ज़ब्त करेगी ? कोयला तश्करी में लिप्त अपराधियों के मकानों पर आखिर बुलडोजर बाबा का बुलडोजर कब गरजेगा ? सलाइबनवा में कोयला डंपिंग साइट पर प्रतिदिन सैकड़ों ट्रकें आती है। लेकिन इन ट्रकों के पत्रावलियों की जांच करने वाले ज़िम्मेदार विभाग के अफ़सरान कार्रवाई के नाम पर डेंगू के मरीज़ की तरह काँपने लगते हैं।आखिर कौन इतना शक्तिशाली माफिया डॉन है जिससे टकराने की हिम्मत सोनभद्र प्रशासन में नहीं है ? जांच के नाम पर पोलियो के मरीज़ की तरह पैर कांपने लगते हैं। ज़िम्मेदार विभाग और अधिकारियों की मनोदशा पार्किंसन रोगी जैसी हो जाती है। कोई भी ज़िम्मेदार विभाग और अधिकारी अवैध कोयले की तश्करी पर बात नहीं करना चाहता।इस विषय पर पत्रकारों के पूछने मात्र से अधिकारियों के चेहरे पीले पड़ जाते हैं। जॉन्डिस के मरीज़ जैसा ये पीला चेहरा शादी के उपटन से नहीं बल्कि खौफ़ से पीला पड़ जाता है।
यहां आपको बताते चलें कि सलाइबनवा कोयला डंपिंग साईट पर ये गोरखधंधा पिछले दस सालों से चल रहा है। सड़ी मछली की तरह सड़ांध फैलने पर तब से लेकर अबतक पहली बार सिर्फ कुछ गाड़ियों पर कार्रवाई की रस्म अदायगी की गई है। दिलचस्प बात ये है कि गाड़ियों को पकड़ने के तीन दिन बाद मामले का खुलासा हुआ। आखिर किस लिए तीन दिन तक मामले को दबाकर रखा गया था। ट्रकों पर लदे मॉल को पत्रावलियों के हिसाब से जाना कहीं और था और पहुंच गई सलाइबनवा कोयला डंपिंग साइट पर। खनिज निरीक्षक मनोज सिंह ने जांचोपरांत पाया कि दस ट्रकों में ब्लैक स्टोन, चार वाहनों में बैग फिल्टर साथ ही दो गाड़ियों में डोलो चारकोल और एक गाड़ी में ईएसपी डस्ट लदा था। वाहनों पर लदी सामग्री पश्चिम बंगाल व स्टील प्लांट से लाया गया था। ये प्रमाण ही अपने आप में कोयला में मिलावट के पुख्ता प्रमाण हैं। इसके बाद रैक लोडिंग साईट पर भी मिलावटी कोयले का भंडार लगा हुआ है। भस्सी कोयले की शुद्धता कि जांच हेतु केमिकल की आवश्यकता पड़ेगी। परन्तु ब्लैक स्टोन और जले हुए स्टील प्लांट के डस्ट के ढेर दूर से अपनी पहचान बता देते हैं। लेकिन साईट पर लगे मिलावटी कोयले के भंडार पर ज़िम्मेदार विभागों ने मौन साध लिया। शायद ज़िम्मेदारी से भागने का मौन साधना अचूक हथियार बन गया है।
एडीएम न्यायिक सुभाष यादव के पूछने पर भी किसी ने ये नहीं बताया कि ये मॉल किस किस फर्म का है। डंप कोयला के मालिक कौन लोग हैं। कोल माफियाओं ने रेलवे डंपिंग पॉइंट को अपना सुरक्षित ठिकाना बना लिया है। चँदासी कोयला मंडी और दूसरी जगह फर्जी पत्रावलियों के सहारे चोरी का कोयला धड़ल्ले से सप्लाई किया जा रहा है। सूत्र बताते हैं कि कोल माफियाओं का नेटवर्क कोयला खदानों से भी प्रतिदिन करोड़ों रुपये के चोरी के कोयले की तश्करी कर रहा। अवैध कोयले का खेल इतने व्यापक पैमाने पर फैला है कि इस पर अब सिर्फ सीबीआई ही कंट्रोल कर सकती है। जल्दी अगर इसका उपचार नहीं किया गया तो ये नासूर बन जायेगा। कोयला के इस अवैध कारोबार को फलने फूलने के लिए जिला स्तर से लेकर शासन सत्ता के कुछ सफेदपोशों का संरक्षण भी हासिल है। जांच के नाम पर सोनभद्र प्रशासन की उदासीनता को लेकर एक शेर बस बात ख़त्म, हमें पता है लुटेरों के सब ठिकानों का। गर शरीक ए जुर्म न होते तो मुखबिरी करते।