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अहंकार रूपी अंधेरे से निकल कर संस्कार रूपी प्रकाश की ओर चलने का नाम ही है मकर संक्रांति

आचार्य प.सुशील मिश्र

प्रयागराज । मकर संक्रांति अर्थात् सूर्य का मकर राशि में प्रवेश। संक्रांति का अर्थ सूर्य या किसी भी ग्रह का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश या संक्रमण है। सूर्य जब मकर राशि में प्रवेश करता है तो मकर संक्रांति कहलाता है।

पौराणिक मान्यता अनुसार इस दिन शनि ने अपनी तपस्या से पिता सूर्य को प्रसन्न किया था और सूर्य इसी दिन प्रथम बार अपने पुत्र से मिलने उसके घर मकर राशि पर आए थे। धार्मिक मान्यता अनुसार, अपनी दूसरी पत्नी संध्या द्वारा पुत्रों में भेद भाव किए जाने और शनि द्वारा अपनी माता संध्या का गलत साथ देने पर क्रोध में सूर्य ने शनि का एक घर कुंभ जला दिया और जब क्रोध शांत हुआ तब सूर्य देव पहली बार अपने बेटे शनि देव से मिलने उसके दूसरे घर मकर में आए थे। उस समय शनि देव ने पिता को काला तिल भेंट किया और साथ ही उसी तिल से उनकी पूजा भी की थी। जिससे पिता सूर्य प्रसन्न हो गए। सूर्य ने बेटे शनि को आशीर्वाद दिया कि जब वे उनके घर मकर राशि में आएंगे, तो उनका घर धन से भर जाएगा।

मकर संक्रान्ति, जनवरी महीने की 14वीं या 15वीं तिथि को ही मनाया जाता है क्योंकि इसी दिन सूर्य धनु राशि को छोड़ कर मकर राशि में प्रवेश करते हैं। ज्योतिष में यह दिन उत्तरायण के नाम से भी जाना जाते है। मकर संक्रान्ति के दिन से ही सूर्य की उत्तरायण गति भी प्रारम्भ होती है। यह त्यौहार एक ओर सूर्य को समर्पित है वहीं दूसरी ओर यह त्योहार अहंकार, अज्ञान, अंधकार से निकल कर परस्पर सौहार्द, प्रेम, बड़ों के प्रति सम्मान और जीवन में उत्कर्ष प्राप्ति के महत्व को भी बताता है।

शास्त्रों के अनुसार दक्षिणायण को देवताओं की रात्रि अर्थात् नकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात् सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है। चूंकि मकर संक्रान्ति के दिन सूर्य की उत्तरायण गति प्रारंभ होती है इसीलिए इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है। सामान्यत: सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं, किन्तु कर्क व मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश धार्मिक दृष्टि से अत्यन्त फलदायक है।

मकर संक्रान्ति से पहले सूर्य दक्षिणी गोलार्ध में होते हैं इसी कारण भारत में रातें बड़ी एवं दिन छोटे होते हैं तथा सर्दी का मौसम होता है। किन्तु मकर संक्रान्ति के दिन से सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध की ओर आना प्रारंभ करते हैं, जिसके कारण इस दिन से रातें छोटी एवं दिन बड़े होने लगते हैं तथा गरमी का मौसम शुरू होने लगता जाता है। अर्थात् ऊर्जा जो शिथिल पड़ी होती है वह संरचनात्मक कार्यों में लगने लगती है।

अत: मकर संक्रान्ति पर सूर्य की राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना माना जाता है। इसी कारणवश मकर संक्रान्ति के अवसर पर सम्पूर्ण भारतवर्ष में लोग विविध रूपों में सूर्यदेव की उपासना, आराधना एवं पूजन कर, उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करते हैं।

महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिये मकर संक्रान्ति का ही चयन किया था।मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं। इस दिन दान देने का विशेष महात्म्य है। इस कारण से इसे ‘दान का पर्व’ भी कहा जाता है।

प्रयागराज के पावन संगम पर प्रत्येक वर्ष एक महीने तक लगने वाले माघ मेले की शुरूआत मकर संक्रान्ति के दिन से ही होती है। समूचे उत्तर प्रदेश में इस व्रत को खिचड़ी के नाम से भी जाना जाता है तथा इस दिन खिचड़ी खाने एवं खिचड़ी दान देने का अत्यधिक महत्व होता है।

देश के विभिन्न क्षेत्रों में मकर संक्रान्ति के अलग-अलग नाम से मनाया जाता है। हरियाणा और पंजाब में इसे लोहड़ी के रूप में एक दिन पूर्व ही मनाया जाता है।बिहार में भी मकर संक्रान्ति को “खिचड़ी” नाम से ही जाता हैं। यहां इस दिन चिवड़ा गुड और दही खाने खाने का विशेह प्रचलन है।महाराष्ट्र में इस दिन सभी विवाहित महिलाएँ कपास, तेल व नमक आदि चीजें अन्य सुहागिन महिलाओं को दान करती हैं। पश्चिम बंगाल में इस त्योहार पर स्नान के पश्चात तिल दान करने की प्रथा है। गंगासागर में प्रति वर्ष भव्य मेला लगता है।

राजस्थान में मकर संक्रान्ति के अवसर पर सुहागन महिलाएँ सौभाग्यसूचक वस्तु का पूजन एवं संकल्प कर ब्राह्मणों को दान देती हैं। वहीं दक्षिण भारत में खास कर तमिलनाडु में मकर संक्रान्ति के अवसर पर “पोंगल” के रूप में चार दिन तक चलने वाला त्योहार मनाया जाता है तो उत्तर पूर्वी प्रांत असम में इसे “माघ-बिहू” अथवा “भोगाली-बिहू” के नाम से मनाया जाता है।

इस दिन आकाश रंग बिरंगे पतंगों से शोभायमान होता है। पतंग जीवन की आशा और खुशियों के नव संचार का प्रतीक है। पतंगे सम्पूर्ण मानवता को सिखाती हैं, हमेशा ऊपर उठते जाना.. लेकिन अपनी डोर जमीन से कटने मत देना। अपनी धरती, माता पिता, सभ्यता और संस्कृति के प्रति जितनी गहरी आस्था होगी हम उतने ही अधिक तरक्की के आसमान को छुएंगे। संस्कार का बीज जितना गहरा होगा, जीवन में उत्कर्ष उतना ही बड़ा होगा।

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