(समर सैम की ज़ीरो ग्राउण्ड़ रिपोर्ट)
उत्तर प्रदेश के नक्सल प्रभावित आदिवासी जिला सोनभद्र में तीरंदाज़ी और हाकी के दर्जनों नेशनल प्लेयर होना अपने आप में एक सुखद एहसास है। तीरंदाज़ी यहां के आदिवासियों के डीएनए में शामिल है। बस आवश्यकता है हीरे को खोजकर तराशने की। फिर उनकी चमक से भारत तो क्या सारा संसार गुलज़ार होगा। सोनभद्र जिले के मुख्यालय रॉबर्ट्सगंज कस्बा से लगभग 3 किलोमीटर की दूरी पर तियरा स्पोर्ट्स स्टेडियम प्रतिभावान खिलाड़ियों को उड़ान भरने के लिए खुला आकाश प्रदान कर रहा है। तीरंदाज़ी के लिए तियरा स्टेडियम में नेशनल स्तर की आर्चरी गैलरी है जहां सोनभद्र के उदयमान तीरंदाज़ दिनभर पसीना बहाते आपको नज़र आ जायेंगे। तियरा स्टेडियम ने गुमनामी में जी रहे प्रतिभावान तीरंदाज़ो के लिए एक नई राह हमवार की है परन्तु अफसोस की बात है कि यहां नेशनल स्तर का कोई स्थायी कोच न होना चिंता का विषय है।
जनपद सोनभद्र को गोद लेने वाले पेट्रोलियम एवं शहरी विकास मंत्री हरदीपसिंह पूरी ने शीघ्र ही स्थायी कोच की व्यवस्था का भरोसा दिलाया है। वैसे भी सियासत की बातें सियासतदां ही जानें।पिछले सप्ताह तियरा आर्चरी स्टेडियम में तीरंदाजी प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। पेट्रोलियम स्पोर्ट्स प्रमोशन की जानिब से आयोजित यह टूर्नामेंट यूपी आर्चरी संघ के कुशल निर्देशन में संचालित किया गया। जिला तीरंदाज़ी संघ के सचिव बलराम कृष्ण यादव ने बताया कि 35 जिलों के तकरीबन 300 से अधिक पुरूष और महिला खिलाड़ियों ने भाग लिया। सेकंड प्रादेशिक तीरंदाज़ी प्रतियोगिता के चीफ गेस्ट पेट्रोलियम एवं शहरी विकास मंत्री हरदीपसिंह पूरी ने विजेता खिलाड़ियों को पुरुस्कार वितरित करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री मोदी जी का संदेश है कि खेलेगा इंडिया तभी तो बढ़ेगा इंडिया। इसी सिलसिले को आगे बढ़ाया जा रहा है।
मंत्री जी ने बताया कि जनपद सोनभद्र में जल्द ही एक आर्चरी स्पोर्ट्स इंस्टीट्यूट स्थापित किया जायेगा। राज्य सभा सदस्य राम शकल और सदर विधायक भूपेश चौबे ने भी मंत्री हरदीपसिंह पूरी के साथ तीरंदाज़ी में गजब का निशाना साधा। वैसे भी सियासतदां अचूक निशाने बाज़ होते हैं। कहीं पे निगाहें, कहीं पे निशाना; अहले सियासत का यही दस्तूर है। यहां आपको यह भी बताते चलें कि जनपद सोनभद्र का कस्बा चुर्क हाकी खिलाड़ियों के प्रोडक्शन फैक्ट्री के नाम से शोहरत ए आम है। यहां एक से बढ़कर एक हाकी खिलाड़ियों ने स्टेट और नेशनल हाकी टीमों में अपने नाम का डंका बजवाया है। लेकिन बड़ी बात यह नहीं है बल्कि बड़ी बात यह है कि बुनियादी सुविधाओं से महरूम होने के बाद भी चुर्क कस्बा के माटी के लालों ने देश व प्रदेश को गौरवान्वित किया है। चुर्क जैसे छोटे से कस्बे में तकरीबन एक दर्जन से अधिक स्टेट और नेशनल प्लेयर मौजूद हैं। इनकी तुलना मोहन बगान फुटबॉल क्लब से की जा सकती है। हाकी हमारा राष्ट्रीय खेल उपेक्षा का दंश झेलने को अभिशप्त है। हाकी की उपेक्षा और सरकार की उदासीनता नेशनल खेल हाकी के बदहाली की दास्तान सुना रहा है।
चुर्क कस्बे में हॉकी की प्रैक्टिस करने के लिए कोई स्टेडियम भी नहीं है। लेकिन अभाव के बाद भी इनका हौसला टूटा नहीं है। कंक्रीट से भरी पहाड़ी पर प्रेक्टिस करते और चोटिल होते हाकी खिलाड़ियों के उत्साह को सलाम। खनिज न्यास निधि के पैसे का विकास के नाम पर बन्दर बांट किया जा रहा है। परन्तु चुर्क के नौनिहालों के लिए राष्ट्रीय खेल हाकी के लिए एक स्टेडियम नहीं बनाया जा रहा है। फिलहाल तियरा आर्चरी स्टेडियम तीरंदाजों की प्रतिभा को निखार कर जग में अपनी आभा बिखेरने का अवसर उपलब्ध करा रहा है।